हम क्यों जी रहे........

इस संसार में हम सांस तो ले रहे.....जिंदगी भी गुजार रहे..... लेकिन हमें ज्ञात ही नहीं किया हम जी क्यों रहे हैं....... किसलिए जी रहे हैं...... कहां तक जीना चाहते हैं...... हमारा मकसद क्या है..... हमारा लक्ष्य क्या है......क्या हम उसी दिशा में बढ़ रहे......? प्रश्न ही प्रश्न हैं......शायद बस ज़बाब की ही कमी है.......और जब तक इन प्रश्नों के हम ज़बाब न ढूंढ़ पायेंगे...क्या हम अपने वर्तमान में वास्तव प्रसन्न हो पायेंगे.....शायद नहीं....!....और हममें से ज्यादातर लोग अपनी वर्तमान परिस्थिति से प्रसन्न भी नहीं रहते......क्या हमारा अनुमान सही है.....🤔 चलिए अब आगे चलते हैं.....इस वर्तमान परिस्थिति की अप्रसन्नता का शायद मूल कारण है.…..कि हम आज जहां भी हैं अपने मन से नहीं हैं.......हम परिस्थिति रूपी धारा में बहते हुए स्वत: यहां तक पहुंच गये हैं......जबकि यह वर्तमान न तो हमारा विचार था, न ही हमारा स्वप्न और न ही हमारे लक्ष्य तक पहुंचने के मार्ग का एक पड़ाव.........ऐसा तभी होता है जब हम अपने आप को स्वतंत्र छोड़ देते हैं नियति के भरोसे...... परिस्थितियों के सहारे........जैसे एक लकड़ी का टु...