कश्मीर में वर्तमान आतंकवाद की नींव


जब हम कश्मीर आतंकवाद के वर्तमान स्वरूप का अध्ययन करते हैं तो हमारा ध्यान 1988 में तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक द्वारा कश्मीर में अशांति और अलगाववाद बढ़ाने के उद्देश्य से लांच किए गये 'आपरेशन टोपाक' पर केन्द्रित हो जाता है। हम सबको यह ज्ञात है कि कोई भी घटना अचानक घटित नहीं होती। प्रत्येक घटना,घटित होने से पहले एक लंबी प्रक्रिया से होकर गुजरती है।जिस प्रकार मकान के आधार (नींव) को हम ऊपर से नहीं देख पाते , फिर भी आधार तो होता ही है और मकान की मजबूती भी उसी आधार पर निर्भर करती है। इसी प्रकार प्रत्येक घटना/समस्या के पीछे भी छुपा हुआ आधार होता है।वही आधार उपस्थित समस्या को निरंतर बने रहने की शक्ति प्रदान करता है। अतः उपस्थित समस्या का समाधान बिना आधार को समझे कभी नहीं हो सकता। इसी प्रकार आपरेशन टोपाक भी अचानक लांच नहीं हुआ। आपरेशन टोपाक का आधार 1971 में पाकिस्तान की हुई शर्मनाक हार में मिलता है।हार के उपरांत काबुल स्थित पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी में सैनिकों को हार का बदला लेने की शपथ दिलाई गई और अगले युद्ध की तैयारी को अंजाम देने कार्ययोजना तैयार की जाने लगी लेकिन इस बीच अफगानिस्तान में भी हालात बिगड़ने लगे। इस प्रकार पाकिस्तान को भारत की तरफ से हटकर अपना ध्यान अफगानिस्तान पर केंद्रित करना पड़ा और 1971 से 1988 तक पाकिस्तान अफगानिस्तान में ही उलझा रहा। लेकिन हमें यहां इस बात पर ध्यान देना होगा कि अफगानिस्तान में युद्ध सिर्फ पाकिस्तानी सेना ही नहीं लड़ रही थी, उसमें बड़े पैमाने पर कट्टरपंथी समूह भी प्रत्यक्ष रूप से शामिल दिखाई देते हैं। इन समूहों के द्वारा तैयार किए गये सैनिक गुरिल्ला युद्धकला का प्रयोग करते थे। इनको प्रशिक्षण और संरक्षण पाकिस्तानी सेना प्रदान करती थी।इस प्रकार 1971 से 1988 के मध्य पाकिस्तानी सेना गुरिल्ला  युद्धकला  में मजबूत हुई और साथ ही साथ युद्ध के विकल्पों के रूप में नये-नये तरीके भी सीखे। अब इन्ही तरीकों को भारत पर आजमाने की बारी थी।

इस प्रकार भारत के खिलाफ 'आपरेशन टोपाक' नामक 'वार विद लो इंटेंसिटी की योजना बनाई गई। इसके तहत कश्मीर के लोगों के मन में अलगाव और भारत के प्रति नफ़रत के बीज बोने थे और फिर उन्ही के हाथों में हथियार थमाना था।

लेकिन यह आपरेशन भी अचानक इतने सफल तरीके से लांच नहीं हो सकता था, इसको समझने के लिए भी हमें 1988 के पहले भारत में घटित कुछ कुछ घटनाओं का अवलोकन करना होगा.....। अपने इन्ही उद्देश्यों में सफल होने के लिए पाकिस्तान ने भारत के पंजाब में आतंकवाद शुरू करने के लिए पाकिस्तानी पंजाब में सिखों को 'खालिस्तान' का सपना दिखाया और हथियारबद्ध सिखों का एक संगठन तैयार करने में मदद की। पाकिस्तान के इस खेल में भारत सरकार उलझती गयी। इसी क्रम में स्वर्ण मंदिर में हुए 'आपरेशन ब्लू स्टार' और उसके बदले के रूप में 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के उपरांत राजीव गांधी ने देश की बागडोर संभाली। इंदिरा गांधी के बाद भारत की राह बदल गयी। राजीव गांधी ने पूरी तरह ध्यान कश्मीर से हटाकर पंजाब और श्री लंका में लगा दिया। यह एक बड़ी चूक थी और अब अफगानिस्तान के अनुभव को भारत में प्रयोग करने का पाकिस्तान के पास यह सुअवसर था।इस प्रकार कश्मीर में आपरेशन टोपाक की पृष्ठभूमि तैयार होती है।

भारतीय राजनेताओं के ढुलमुल रवैये के चलते कश्मीर में 'ऑपरेशन टोपाक' बगैर किसी परेशानी के चलता रहा और धीरे-धीरे आतंकवादी चरित्र कश्मीर से बाहर लद्दाख और जम्मू में पांव पसारने लगा। इस बीच अनेकों दंगे हुए इसी क्रम में , चूंकि आपरेशन टोपाक का आधार कट्टरपंथ और कौमी नफरत पर आधारित था, इसीलिए इन आतंकी गतिविधियों में  गैर - मुस्लिम भी निशाने पर थे और इसी का परिणाम था लगभग 7 लाख से अधिक कश्मीरी हिंदुओं का विस्थापित होना। इसी दौरान हजारों निरीह कश्मीरी हिंदुओं की नृशंस हत्या और कुकृत्य जैसे मामले हुए। इसका असर आज सिर्फ कश्मीर में ही नहीं संपूर्ण भारत में दिखाई पड़ता है।

कश्मीर में  पाकिस्तान द्वारा संचालित आपरेशन टोपाक' को अंजाम तक पहुंचाने में प्रयासरत प्रमुख आतंकवादी संगठन हैं.....

जे.के.एल.एफ
हिजबुल मुजाहिद्दीन
अल्लाह टाइगर्स
हरकत-उल-अंसार
लश्कर-ए-तोइबा
सिम्मी
अजुमन-ए-ख्वातीन
उल्फा ......आदि!

#शिवम_उपाध्याय


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