कारगिल संघर्ष (1999)
कारगिल, कश्मीर घाटी-लद्दाख-सियाचिन की सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र नियंत्रण रेखा के पूर्व और सियाचिन व सालटोरों चोटियों तक फैला है। यहां से राष्ट्रीय राजमार्ग 1-A पर नजर रख सकते हैं। वैसे तो कारगिल लद्दाख भूभाग का ही हिस्सा है,मगर शियाओं की बहुलता के कारण अलग जनपद बना दिया गया। कारगिल सेक्टर की कठिन भौगोलिक स्थिति के कारण साधारण रूप से न तो यहां अधिक लोग और न ही सैनिक पूरे वर्ष भर तैनात रह सकते हैं।
पाकिस्तानी सैन्य मुख्यालय में सन् 1987 से ही एक बड़ी कार्रवाई के द्वारा कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ की योजना थी,पर उसे 1999 तक की सरकारों द्वारा क्रियान्वित नहीं किया गया । जनरल जिया, बेनजीर भुट्टो,नवाज शरीफ ने कारगिल योजना को मंजूरी नहीं दी थी।
1998 के परमाणु परीक्षणों के उपरांत भारत-पाक दोनों शस्त्र प्रतिस्पर्धा को कम करने के इच्छुक थे।इसी क्रम में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी लाहौर गये थे। वहां वाजपेई जी ने नवाज शरीफ के साथ घोषणा पत्र भी हस्ताक्षरित किया था।
वाजपेई जी व शरीफ की वार्ता से मुशर्रफ खुश नहीं थे। इसीलिए जब वाजपेई जी लाहौर में थे तो मुशर्रफ नियंत्रण रेखा पर योजनाओं को अंतिम रूप दे रहे थे।शायद पाकिस्तान के सैन्य तंत्र को शुरू से यकीन था कि भारत में राजनीतिक अस्थिरता है तथा वाजपेई जी की सरकार अल्पमत की है जिससे उनमें एकता व दृढ़ निश्चय की कमी होगी।इसी कारणआई.एस.आई. व पाक सेना मुख्यालय इसी आशा में था कि भारतीय कार्रवाई शायद ही सैन्य अभियान तक जाये और अगर भारत ने कार्रवाई शुरू भी की तो परमाणु बम की धमकी देकर कार्रवाई रोंक देने में सफल हो जायेंगे।
मुशर्रफ ने 20 व 21 अक्टूबर 1998 को पाक सेना की 10वीं कार्प के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल महमूद अहमद के साथ पाक अधिकृत कश्मीर के उत्तरी इलाकों का दौरा किया और कारगिल योजना को स्वीकृत किया व अक्टूबर-दिसम्बर 1998 में इसे अंतिम रूप दिया गया। नवाज शरीफ को जो तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री थे , कारगिल योजना के बारे में सूचना जनवरी 1999 को पाक सेना मुख्यालय रावलपिंडी में बताया गया।
नियमित पाक सेना की आक्रमण की प्रक्रिया दिसम्बर 1998 से मार्च 1998 तक की अवधि में चली । अप्रैल के अन्तिम सप्ताह से मई के प्रथम सप्ताह तक पाकिस्तानी सैनिक पूरे कारगिल क्षेत्र में पूरी नियंत्रण रेखा पार कर चुके थे । इस प्रक्रिया का अंदाजा तब चला जब 2 से 5 मई के बीच भारतीय सेना के अग्रदल को मुखबिरों द्वारा सूचना मिली की वहाँ पाक सैनिक एकत्र हो चुके हैं ।
शुरुआत में पाकिस्तान की योजना कश्मीर में पहाड़ की कुछ चोटियों पर कब्ज़ा करने और फिर श्रीनगर-लेह राजमार्ग को बंद करने की थी। इस सड़क को बंद करना पाकिस्तान की प्रमुख रणनीतियों में शामिल था क्योंकि यह एकमात्र रास्ता था जिससे भारत कश्मीर में तैनात सैनिकों को सैन्य हथियार भेजता था।
भारत की तरफ से शुरुआती प्रतिक्रिया में विशेष ध्यान नहीं दिया गया। जिससे पाकिस्तान सेना ने शुरू में भारतीय बलों को नुकसान पहुंचाया चूंकि वह ऊंचाई पर मौजूद थे तो उनके लिए भारतीय सैनिकों को टारगेट करना बहुत आसान था.... लेकिन बाद में स्थिति बदल गई। परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए भारतीय सेना ने बोफोर्स तोपें मंगवाई। जिन्हें आमतौर पर इस तरह के ऑपरेशन में इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
पाक सैन्य अधिकारियों ने भी भारत के द्वारा ऐसी प्रतिक्रिया की अपेक्षा नहीं की थी।भारतीय सेना ने बोफोर्स तोपों को उसी श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर तैनात किया, जिसे पाकिस्तान बंद करना चाहता था। बोफ़ोर्स तोपों ने पहाड़ की चोटियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल दिया और भारतीय वायु सेना ऊपर से लगातार बमबारी कर रही थी,इस तथ्य की पुष्टि दोनों देशों ने की है।
कारगलि युद्ध नियंत्रण रेखा के 200 किमी के दायरे में लड़ा गया जो सियाचिन के पश्चिम पहाड़ के ढालानों में मुश्कोह घाटी से लेकर सालटोरी चोटी तक फैला था । असली युद्ध अत्यन्त कष्टकर भूभाग में , अत्यन्त ठंड में 10,000-18,000 फीट की पर लड़ा गया । पाक ने भारी हथियार , जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल आदि भी तैनात की थी । दूसरी ओर भारतीय नौसेना ने कार्यवाही योजना बना ' आपरेशन तलवार ' के तहत अरब सागर में जहाज तैनात कर दिया , जिससे पाक नौ सेना सक्रिय न हो पायी । पाक ने इस कारवाई को ' आपरेशन बड ' का नाम दिया , जबकि भारतीय थल , नौ , वायु ने इसे क्रमशः आपरेशन विजय , आपरेशन तलवार , आपरेशन सफेद सागर का नाम दिया। कारगिल युद्ध में भारतीय वायुसेना ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की....!
परिणाम स्वरूप 1971 के युद्ध की तरह कारगिल संघर्ष में भी पाकिस्तानी सेना बुरी तरह पराजित हुई । परिणाम की दृष्टि से यह संघर्ष निर्णायक सिद्ध हुआ । पाकिस्तान की लोकतान्त्रिक राजनीतिक सत्त का पतन हो गया और चौथी बार पाकिस्तान में सेना ने पुनः राजनीतिक सत्ता पर कब्जा कर लिया और मुशर्रफ ने सेनाध्यक्ष तथा राष्ट्रपति दोनों पदों पर कब्जा कर लिया.....इस प्रकार राजनीतिक सत्ता जनता के हाथों से निकलकर पुनः सेना के पास पहुंच गई।
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