इतिहास-वर्तमान और भविष्य


इतिहास......उन तमाम पक्षों से हम सबको अवगत कराने के लिए होता है जो पूर्व में घटित हुए .....उस वक्त से सीखने के लिए होता है जो निरंतर तीव्र गति से चलते समय के चक्र के आगोश में समाकर बीता हुआ कल बन चुका है...... इतिहास जीने के लिए नहीं होता है..... इतिहास सीखने के लिए होता है...... इतिहास में जीकर हम प्रगति की चेष्टा कर ही नहीं सकते.....सिवाय निरंतर पतन को आमंत्रित करने के..…. इतिहास गर्व करने का विषय अवश्य हो सकता है लेकिन उस गर्व के चक्कर में वहीं एक ही जगह स्थिर हो जाना इतिहास के साथ बिल्कुल भी न्याय नहीं हो सकता...... इतिहास के जिस घटना को हम मात्र गर्व करने मात्र की तारीख मान लेते हैं दरअसल वह तिथि/घटना असल में हमें नई चुनौतियां दे रही होती है ...... वर्तमान और भविष्य में उस गर्व करने वाली तिथि/घटनाओं से भी इतना अच्छा करने की....जिससे आने वाला कल आपके आज के कार्यों पर गर्व करे न कि वो भी आपकी /हमारी तरह उसी तिथि पर/इतिहास पर गर्व करता रहे जिस पर हम गर्व करते-करते काल के आगोश में समा गये....।
हमें गुजरे हुए कल से सीख लेनी चाहिए..... वर्तमान में कदम बढ़ाना चाहिए..... लेकिन भविष्य को देखते हुए.....यदि हम ऐसा न करेंगे तो दुर्घटना होना लगभग-लगभग तय है.....एक छोटे से उदाहरण से समझते हैं.....जब हम/आप चल रहे होते हैं तो क्या हम सिर्फ अपने पांव के नीचे तक देखते हैं, अर्थात् वर्तमान तक....क्योंकि हमारा/आपका वर्तमान उस समय आपके/हमारे पांव के नीचे तक ही है.... फिर भी जब हम या आप चलते हैं तो दूर तक देखते हुए आगे बढ़ते हैं....और शायद पांव के नीचे तो दृष्टि केंद्रित रखते ही नहीं हैं....क्योंकि हम दूर तक देखने के कारण उस पथ का पहले ही अवलोकन कर चुके होते हैं तो हमें आवश्यकता ही नहीं होती पांव के नीचे देखते रहने की..….और यदि हम चलते समय दूर तक न देखकर सिर्फ पांव के नीचे ही देखते रहें तो परिणाम तो आपको/हमको ज्ञात ही होगा.....किस पल क्या हो सकता है हमारे/आपके साथ..... इसीलिए दूर तक बिना दुर्घटना के शिकार हुए यात्रा करने हेतु इतिहास, वर्तमान और भविष्य तीनों के मध्य संतुलन बनाए रखना अतिआवश्यक है....।

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