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मजबूर और असहाय किसान

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 अभी आलू है व्यापारियों के हाथ में और बुआई करनी है किसान को तो आलू का दाम है 40 रुपये किग्रा.....जब आलू किसान के पास होती है यानि की जब किसान की आलू की फसल तैयार हो जाती है और आलू किसान को बेंचना होता है और व्यापारियों को खरीदना होता है तो दाम हो जाता है 6-8 रुपये किग्रा.…...! आंकड़ों पर एक नजर डालें तो 1990 के बाद से सरकारी कर्मचारियों की आय में 180-200% बढ़ोत्तरी हुई है जबकि किसानों की आय में लगभग 20% ही बढ़ोत्तरी हुई है...!ध और सरकारी तंत्र के लोगों के मध्य सदैव चर्चा का विषय रहता है कि आखिर एक किसान आत्महत्या क्यों करता है और निष्कर्षत: आत्महत्या को कायराना हरकत ठहराकर चर्चा समाप्त हो जाती है। एक सूचना के अनुसार इस वर्ष हरियाणा के किसान मक्के की फसल उस मूल्य पर बेंचने को मजबूर हुए जो मूल्य मक्के का वर्ष 1995 में था। जबकि किसान की उस विशेष फसल को छोड़कर मंहगाई 2020 वाली ही है।1995 के मूल्य पर फसल बेंचकर 2020 में किसान अपना गुजारा कैसे करता होगा इस बात का अंदाजा आप सभी लोग स्वयं लगा सकते हैं। यह अलग बात है कि कोरोना और लाकडाउन के चलते ऐसा हुआ लेकिन सामान्य वातावरण में भी किसानों ...

ईसाई धर्म और वर्ग आधारित भेदभाव : एक सच

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भारत में जब भी जाति व्यवस्था/वर्ण व्यवस्था या छुआछूत पर चर्चा होती है तो हिन्दू धर्म में व्याप्त जाति व्यवस्था/वर्ण व्यवस्था  की ही बात सामने आती है। इस कुरीति व अन्यायपूर्ण समाजिक व्यवस्था को जड़ से समाप्त करने के लिए अनेक समाज सुधारकों व समाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा निरंतर प्रयास होता रहा है। इन्ही कुरीतियों व अन्यायपूर्ण व्यवस्था के कारण ही विरोध स्वरूप बौद्ध मत का उदय भी हुआ था । इसी व्यवस्था से त्रस्त होने पर या इसी व्यस्था को ध्यान में रखकर इसाई मिशनरियां दलित/निम्न हिंदू वर्ग को बहला-फुसलाकर आसानी से इसाई धर्म में परिवर्तित करने में कामयाब हो जाते हैं।  जबकि एक सत्य यह भी है कि जाति व्यवस्था , छुआछूत मात्र हिंदू धर्म में ही नहीं अपितु इसाई धर्म व मुस्लिम धर्म में भी बड़े स्तर पर व्याप्त है।लोगों को लगता है कि इसाई धर्म में ऐसी संकीर्णता नहीं होगी,वह इन सब बातों से बहुत आगे निकल चुके हैं लेकिन वह सिर्फ छद्म आवरण के बाहर का सच है।आवरण के भीतर देखने पर कुछ और ही रूप दिखाई पड़ता है। भारत में इसाई धर्म को भी आसानी से 2 भागों में बांटा जा सकता है। एक सवर्ण इसाई या इसाई जिसका की...

कारगिल संघर्ष (1999)

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कारगिल, कश्मीर घाटी-लद्दाख-सियाचिन की सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र नियंत्रण रेखा के पूर्व और सियाचिन व सालटोरों चोटियों तक फैला है। यहां से राष्ट्रीय राजमार्ग 1-A पर नजर रख सकते हैं। वैसे तो कारगिल लद्दाख भूभाग का ही हिस्सा है,मगर शियाओं की बहुलता के कारण अलग जनपद बना दिया गया। कारगिल सेक्टर की कठिन भौगोलिक स्थिति के कारण साधारण रूप से न तो यहां अधिक लोग और न ही सैनिक पूरे वर्ष भर तैनात रह सकते हैं। पाकिस्तानी सैन्य मुख्यालय में सन् 1987 से ही एक बड़ी कार्रवाई के द्वारा कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ की योजना थी,पर उसे 1999 तक की सरकारों द्वारा क्रियान्वित नहीं किया गया । जनरल जिया, बेनजीर भुट्टो,नवाज शरीफ ने कारगिल योजना को मंजूरी नहीं दी थी। 1998 के परमाणु परीक्षणों के उपरांत भारत-पाक दोनों शस्त्र प्रतिस्पर्धा को कम करने के इच्छुक थे।इसी क्रम में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी लाहौर गये थे। वहां वाजपेई जी ने नवाज शरीफ के साथ घोषणा पत्र भी हस्ताक्षरित किया था। वाजपेई जी व शरीफ की वार्ता से मुशर्रफ खुश नहीं थे। इसीलिए जब वाजपेई जी लाहौर में थ...

कश्मीर में वर्तमान आतंकवाद की नींव

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जब हम कश्मीर आतंकवाद के वर्तमान स्वरूप का अध्ययन करते हैं तो हमारा ध्यान 1988 में तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक द्वारा कश्मीर में अशांति और अलगाववाद बढ़ाने के उद्देश्य से लांच किए गये 'आपरेशन टोपाक' पर केन्द्रित हो जाता है। हम सबको यह ज्ञात है कि कोई भी घटना अचानक घटित नहीं होती। प्रत्येक घटना,घटित होने से पहले एक लंबी प्रक्रिया से होकर गुजरती है।जिस प्रकार मकान के आधार (नींव) को हम ऊपर से नहीं देख पाते , फिर भी आधार तो होता ही है और मकान की मजबूती भी उसी आधार पर निर्भर करती है। इसी प्रकार प्रत्येक घटना/समस्या के पीछे भी छुपा हुआ आधार होता है।वही आधार उपस्थित समस्या को निरंतर बने रहने की शक्ति प्रदान करता है। अतः उपस्थित समस्या का समाधान बिना आधार को समझे कभी नहीं हो सकता। इसी प्रकार आपरेशन टोपाक भी अचानक लांच नहीं हुआ। आपरेशन टोपाक का आधार 1971 में पाकिस्तान की हुई शर्मनाक हार में मिलता है।हार के उपरांत काबुल स्थित पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी में सैनिकों को हार का बदला लेने की शपथ दिलाई गई और अगले युद्ध की तैयारी को अंजाम देने कार्ययोजना तैयार की जाने लगी लेकिन ...